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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav गद्य Chapter 4 एक कहानी यह भी
एक कहानी यह भी Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी का जन्म किस गाँव में हुआ?
उत्तर:
मन्नु भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा में हुआ।
प्रश्न 2.
अजमेर से पहले मन्नू के पिता कहाँ थे?
उत्तर:
अजमेर से पहले मन्नू के पिता इंदौर में थे।
प्रश्न 3.
लेखिका की बड़ी बहन का नाम लिखिए।
उत्तर:
लेखिका की बड़ी बहन का नाम सुशीला है।
प्रश्न 4.
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी कौन है?
उत्तर:
पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी मन्नू है।
प्रश्न 5.
महानगर के फ्लैट में रहनेवाले लोग क्या भूल गए हैं?
उत्तर:
महानगर के फ्लैट में रहनेवाले लोग पड़ोस कल्चर भूल गए है।
प्रश्न 6.
पिताजी का आग्रह क्या था?
उत्तर:
पिताजी का आग्रह था कि मन्नू रसोई से दूर रहे।
प्रश्न 7.
पिताजी रसोई घर को क्या कहते थे?
उत्तर:
पिताजी रसोईघर को भटियारखाना कहते थे।
प्रश्न 8.
मन्नू भंडारी को प्रभावित करने वाली हिन्दी प्राध्यापिका का नाम लिखिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी को प्रभावित करनेवाली हिन्दी प्राध्यापिका थी शीला अग्रवाल।
प्रश्न 9.
कॉलेज से किसका पत्र आया?
उत्तर:
कॉलेज से प्रिन्सिपल का पत्र आया।
प्रश्न 10.
पिताजी के अंतरंग मित्र का नाम बताइए।
उत्तर:
पिताजी के अंतरंग मित्र का नाम था डॉ. अंबालाल।
प्रश्न 11.
शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
उत्तर:
15 अगस्त 1947, भारत की आज़ादी।
प्रश्न 12.
‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका कौन हैं?
उत्तर:
‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका है मन्नू भंडारी।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
मन्नू भंडारी के बचपन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
मन्नू भण्डारी का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा नामक गाँव में हुआ। उनका बचपन अजमेर के ब्रह्मपुरी मोहल्ले के दो मंजिला मकान में गुजरा। वे अपने पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उन्होंने बड़ी बहन सुशीला के साथ घर के बड़े से आँगन में बचपन के सारे खेल खेले – सतोलिया, लंगडी टाँग, पकड़म-पकड़ाई, काली-टीलो। उन्होंने गुड्डे-गुडियों के ब्याह रचाए और भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा भी खेला। उनका रंग काला और बचपन में बहुत ही दुबली और मरियल भी थीं। गोरा रंग पिता की कमजोरी थी। इस काले रंग ने उनके भीतर हीन भावना पैदा कर दी जिससे नाम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाने के बावजूद वे उबर नहीं पाईं।
प्रश्न 2.
पिताजी के प्रति लेखिका के क्या विचार थे?
उत्तर:
लेखिका अपने पिता जी के बारे में कहती हैं – उनकी प्रतिष्ठा थी, सम्मान था और नाम भी था। उन्होंने कई विद्यार्थियों को घर लाकर पढ़ाया भी था। उनकी दरियादिल की काफी चर्चाएँ होती थीं। एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे, तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी भी थे।
प्रश्न 3.
लेखिका बचपन में कौन-कौन से खेल खेलती थीं?
उत्तर:
लेखिका बचपन में भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा, पतंग उड़ाने, काँच पीसकर माँजा सूतना तथा अपनी बहन सुशीला और पास पड़ोस की सहेलियों के साथ घर में सतोलिया, लँगड़ी-टाँग, पकड़मपकड़ाई, काली-टीलो, गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह आदि खेल खेलती थीं।
प्रश्न 4.
‘पड़ोस-कल्चर’ के बारे में लेखिका क्या कहती है?
उत्तर:
‘पड़ोस कल्चर’ के बारे में लेखिका मन्नू भंडारी कहती हैं कि उस जमाने में घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं। इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। लेकिन आज आधुनिक दबाव ने महानगरों के फ्लैट में रहने वालों को हमारे इस परंपरागत ‘पडोस-कल्चर’ से विच्छिन्न करके हमें संकुचित, असहाय और असुरक्षित बना दिया है।
प्रश्न 5.
शीला अग्रवाल का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा।
उत्तर:
लेखिका मन्नू भण्डारी हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के बारे में कहती हैं कि उन्होंने ही उसे साहित्य की दुनिया में प्रवेश करवाया। शीला अग्रवाल सावित्री गर्ल्स कालेज में जहाँ मन्नू हाईस्कूल पास कर फस्ट इयर कालेज में भर्ती हुई थीं, वहाँ हिन्दी की प्राध्यापिका थीं। उन्होंने मन्नू की आदत मात्र पढ़ने को, चुनाव करके पढ़ने में बदला। खुद चुन-चुनकर किताबें दी। पढ़ी हुई किताबों पर बहसें की। मन्नू की साहित्यिक दुनिया शरत्-प्रेमचंद्र से बढ़कर जैनेंद्र, अज्ञेय, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा तक फैल गयी। ‘सुनीता’, ‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘त्याग पत्र’, ‘चित्रलेखा’ जैसी किताबों पर मंथन किया गया। शीला अग्रवाल ने मन्नू को देश की परिस्थितियाँ जानने, समझने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि देश की आजादी के लिए घर की चारदीवारी से खींचकर उसमें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए भी जागृत किया।
प्रश्न 6.
पिताजी ने रसोई को ‘भटियारखाना’ क्यों कहा है?
उत्तर:
पिता जी रसोई घर को भटियारखाना कहते थे। क्योंकि उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था। इसीलिए पिताजी का आग्रह रहता था कि मैं रसोई से दूर ही रहूँ।
प्रश्न 7.
एक दकियानूसी मित्र ने मन्नू भंडारी के पिता से क्या कहा?
उत्तर:
पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी। उन्होंने कहा – “अरे उस मन्नू की तो मति मारी गई है, पर भंडारी जी आपको क्या हुआ हैं? आपने लड़कियों को आजादी दी, वह लड़कों के साथ हड़तालें करवाती, हुड़दंग मचाती फिर रही है। क्या लड़कियों को यह शोभा देता है? कोई मान-मर्यादा, इज्जत-आबरू का आपको ख्याल है या नहीं?”
प्रश्न 8.
मन्नू भंडारी की माँ का परिचय दीजिए।
उत्तर:
मन्नू भंडारी की माँ उनके पिता के ठीक विपरीत थीं। वे पढ़ी-लिखी नहीं थीं। उनमें धरती से कुछ ज्यादा ही धैर्य और सहनशक्ति थी। वे पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर उचित-अनुचित फरमाइश और जिद को अपना फर्ज समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं। उन्होंने जिंदगी भर अपने लिए कुछ माँगा नहीं, चाहा नहीं…. केवल दिया ही दिया।
IV. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए।
प्रश्न 1.
‘एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी।
उत्तर:
प्रसंग: इस वाक्य को मन्नू भंडारी के लिखे ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया है।
व्याख्या: अजमेर से पहले मन्नु के पिता इंदौर में थे जहाँ पर उनका बहुत मान-सम्मान, प्रतिष्ठा थी। आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आए। काँग्रेस के साथ-साथ वे समाज सुधार कामों से भी जुड़े हुए थे। शिक्षा को वे केवल उपदेश नहीं देते थे बल्कि आठ-आठ दस-दस विद्यार्थीयों को अपने घर में रखकर पढ़ाया करते थे। वे बहुत दरियादिल थे। एक ओर वे बेहद कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे तो दूसरी ओर बेहद क्रोधी और अहंवादी। उन्होंने अपने बल-बूते पर अंग्रेजी-हिन्दी विषयवार शब्दकोश तैयार किया। अपनों के विश्वासघात, आर्थिक विवशता, नवाबी आदतें, अधूरी महत्वाकांक्षा के कारण आखिरी दिन में वे बहुत शक्की बन गए थे। रसोई को वे भटियारखाना कहते थे और वे नहीं चाहते थे कि मन्नू रसोई में जाएँ। उनके घर में आए दिन विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के जमावड़े होते थे और जमकर बहसें होती थी।
प्रश्न 2.
‘पिता के ठीक विपरीत थीं हमारी बेपढ़ी-लिखी माँ।’
उत्तर:
प्रसंग: इस वाक्य को मन्नू भंडारी के लिखे ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया है।
व्याख्या: मन्नू की माँ उनके पिता के ठीक विपरीत थी। वह पढ़ी-लिखी नहीं थी। धरती से ज्यादा धैर्य और सहनशक्ति थी उसमें। पिताजी की हर ज्यादती को वह सह लेती और बच्चों की हर जिद हर फरमाइश सहज भाव से स्वीकार करती। सबकी इच्छा और पिताजी की आज्ञा को पालन करने के लिए सदैव तैयार रहती। सारे बच्चों का लगाव माँ के साथ था। लेकिन चुपचाप असहाय मजबूरी में रहना, उनका त्याग वगैरा सब मन्नू के लिए कभी आदर्श नहीं रहा।
प्रश्न 3.
‘यह लड़की मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखेगी।
उत्तर:
प्रसंग: इस वाक्य को मन्नू भंडारी के लिखे ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया है।
व्याख्या: वह समय ही वैसा था कि मन्नू हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हडतालें करवाती, लड़कों के साथ शहर में घूमती तो एक दिन कॉलेज के प्रिंसिपल का पिताजी को पत्र आया। कि वह जाकर उन्हें मिले और उन्हें बताए कि उसके गतिविधियों के कारण उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न किया जाय? पिताजी ने तब गुस्से में ऊपर का वाक्य कहा। चार बच्चे पहले पढ़ चुके लेकिन किसी ने यह दिन नहीं दिखाया था।
प्रश्न 4.
‘वे बोलते जा रहे थे और पिताजी के चेहरे का संतोष धीरे-धीरे गर्व में बदलता जा रहा था।
उत्तर:
प्रसंग: इस वाक्य को मन्नू भंडारी के लिखे ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया है।
व्याख्या: एक दिन शाम को जब कॉलेज के विद्यार्थी चौराहे पर भाषणबाजी कर रहे थे तब अजमेर के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित डॉ. अंबालाल ने वह सुनकर मन्नू के पिताजी के पास आकर उसकी तारीफ करने लगे कि क्या तुम घर में बैठे हो – यू रिअली मिस्ड समथिंग। उन्होंने मन्नू के पिताजी को बधाई दी तब पिताजी का संतोष गर्व में बदलता जा रहा था।
प्रश्न 5.
‘क्या पिताजी को इस बात का बिलकुल भी अहसास नहीं था कि इन दोनों का रास्ता ही टकराहट का है?’
उत्तर:
प्रसंग: इस वाक्य को मन्नू भंडारी के लिखे ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया है।
व्याख्या: मन्नू अपने पिताजी के स्वभाव के बारे में बताते हुए कह रही है कि उनकी सबसे बड़ी दुर्बलता थी यश की कामना और उनका मानना था कि व्यक्ति को कुछ विशिष्ट बनकर जीना चाहिए। लेकिन मन्नू को अपने अनुशासन के दायरे से निकलकर निषेध करना विरोध करना उनको बर्दाश्त नहीं हो रहा था। कुछ खास बनना और सामाजिक छवि भी संभालना दोनों का ही रास्ता टकराहट का होता है। इसका शायद उन्हें अहसास नहीं था
V. निम्नलिखित वाक्यों को सूचनानुसार बदलिए।
प्रश्न 1.
एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए थे। (वर्तमान काल में बदलिए)
उत्तर:
एक बहुत बड़े आर्थिक झटके के कारण वे इंदौर से अजमेर आ गए।
प्रश्न 2.
वे जिंदगी भर अपने लिए कुछ माँगते नहीं हैं। (भूतकाल में बदलिए)
उत्तर:
उन्होंने ज़िन्दगी भर अपने लिए कुछ माँगा न था।
प्रश्न 3.
उनका भाषण सुनते ही बधाई देता हूँ। (भविष्यत्काल में बदलिए)
उत्तर:
उनका भाषण सुनते ही बधाई देंगे।
VI. विलोम शब्द लिखिए:
- पाप x पुण्य
- सुरक्षित x असुरक्षित
- नैतिक x अनैतिक
- सक्रिय x निष्क्रिय
- सही x गलत
- व्यवस्थित x अव्यवस्थित
- सम्भव x असम्भव
VII. निम्नलिखित शब्दों के साथ उपसर्ग जोड़कर नए शब्दों का निर्माण कीजिए।
- प्रतिष्ठित – अप्रतिष्ठित
- हद – बेहद
- यश – अपयश
- क्रिया – प्रक्रिया
एक कहानी यह भी Summary in English
This is a part of a Biography of Mannu Bhandari, a great Hindi author. She tells about her childhood, her father, mother and the five siblings. She was the youngest of all. Because of some financial problems, her father shifted from Indore to Ajmer. Her father was very kind-hearted and sentimental, but extremely short-tempered. He always lived like a king, dictating things. Her mother was a simple house wife. She was not educated and she gave her life in serving her husband and children. She was always scared of her husband. Her mother’s sacrifice for the family never impressed Mannu.
Her father was a very strict disciplinarian and he liked only fair coloured daughters. But Mannu was of a dark complexion and being the youngest, he never bothered about her when she was growing up. Her sister Susheela was elder to her by two years and they always played together with their neighborhood kids. When her sisters got married and went away and both her brothers left home for studies and job, her father started noticing Mannu.
Her father never liked to see Mannu in the kitchen; he called it as ‘Bhatiyarkhana’. “Why waste your talent and knowledge in ‘Bhatiyarkhana”? was what he used to say to Mannu. For this, she is not praising her father for not critisişing her. She just wants to analyse what qualities she had inherited from him.
Mannu was a headstrong and adamant girl like her father. She showed her grit when she got married to Rajendra Yadav (a great Hindi Author). That was the time when the freedom movement was going on in the country. Mannu used to take part actively in the movement, by giving speeches. She used to read a lot, but Sheela Agarwal, her Hindi Teacher, suggested her to read good, selected books. During that time she read a lot of Hindi Literature, discussed with her teacher which changed her entire life. She used to sit with her father when his friends used to discuss politics.
Her father always believed that a person should be successful in life. Mannu was actively participating in the freedom struggle and giving speeches, and some friends of her father commented about that to him in a derogatory manner. Whenever he heard such criticism, he used to think – this girl Mannu will bring bad name to our family. But when his friend Dr. Ambalal, praised Mannu after hearing her speech and told him that he had really missed something, he really felt proud of her.
Though she too was scared of her father, like the time when the Principal had written a letter to her father, it did not stop Mannu joining Jai Hind Fouj agitation. She was there when there was a big strike. In May 1947, Sheela Agarwal got the notice to leave the school, Mannu and some of her friends were rusticated from the College. But the biggest event was what happened on 15th August 1947, when India got her Independance. That was the red letter day for the country.
एक कहानी यह भी Summary in Kannada