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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav पद्य Chapter 10 हो गई है पीर पर्वत-सी
हो गई है पीर पर्वत-सी Questions and Answers, Notes, Summary
भावार्थः
प्रश्न 1.
‘हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।’
उत्तरः
कवि दुष्यंत कुमार इस कविता में परिवर्तन की बात कर रहे है, क्रांति की बात कर रहे है। वे पूर्व समाज को, सामाजिक व्यवस्था को झकझोरकर उनमें बदलाव लाना चाहते है। वह कह रहे है अब तो दुःख, दर्द, पीडा हद से गुजर गई है-दुःख के इस महापर्वत को अब पिघलना ही चाहिए। जैसे हिमालय से गंगा की धार निकली वैसे दुःख की कोई राह निकलनी चाहिए।
प्रश्न 2.
‘आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।’
उत्तरः
इतने सालों से अपने आस-पास चारों तरफ बहुत सी दीवारें खडी कर दी है, उस के आगे हम सोच नही सकते थे आज ये दीवारे कमजोर हो गई है, परदों की तरह हील रही है यह दीवारे। कुछ तो हलचल हो रही है। लोगों की सोच-विचार में परिवर्तन आ रहा है लेकिन शर्त यह है कि पूरी बुनियाद हिल जाए। सिर्फ ऊपरी तौर पर नही बल्कि लोगों की पूरानी परंपरा, व्यवस्था, विचार में बदलाव आना चाहिए। पूरे अंदर से वे हिल जाए।
प्रश्न 3.
हर सडक पर, हर गली में हर नगर हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
उत्तरः
यह जंग, यह संग्राम एक मनुष्य मात्र का नही। यह बदलाव, यह विचारों की क्रांति हर गाँव, हर गली, हर सडक तक पहुँच जाए। हर एक जन मानस तक पहुंच जाएं ऐसी लहर जो लाश जैसे सोये हुए हर इन्सान में जान भर दे। उससें यह चेतना और आग भर दे।
प्रश्न 4.
सिर्फ हंगामा खडा करना, मेरा मकसद नही,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
उत्तरः
सिर्फ वैचारिक रुपसे, सिर्फ साहित्य और लेख में परिवर्तन की बाते कर हंगामा खडा करना कवि का मकसद नही है। कवि चाहते है कि इन्सान की पहले की सूरत ही बदल जाए। समाज में, देश में क्रांति की लहर जाग उठे।
प्रश्न 5.
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने मे सही,
हों कही भी आग लोकिन आग जलनी चाहिए।
उत्तरः
कवि यहाँ पर कह रहे है कि क्रांतिकी यह ज्वाला जलती रहनी चाहिए मेरे दिल में न सही लेकिन यह आग बुझनी नही चाहिए। एक बार जो आग लगेगी-अन्याय, अत्याचार के विरोध में वह तब तक न बुझे जबतक उसका कोई हल न मिले। कोई समझौता नही, यह आग तभी शांत होगी जब अन्याय अनाचार मिट जाए। तब तक हरएक के दिल में यह आग जलती रहनी चाहिए।’
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
कवि दुष्यन्त कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा किसके समान है?
उत्तरः
कवि दुष्यन्तं कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा पर्वत के समान है।
प्रश्न 2.
पीर पर्वत हिमालय से क्या निकलनी चाहिए?
उत्तरः
परि पर्वत हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए।
प्रश्न 3.
दीवार किसकी तरह हिलने लगी?
उत्तरः
दीवार परदों की तरह हिलने लगी।
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार क्या शर्त थी?
उत्तरः
कवि के अनुसार शर्त यह थी कि बुनियाद हिलनी चाहिए।
प्रश्न 5.
पीड़ित व्यक्ति को किस प्रकार चलना चाहिए?
उत्तरः
पीड़ित व्यक्ति को हाथ लहराते चलना चाहिए।
प्रश्न 6.
कवि का क्या मकसद नहीं है?
उत्तर:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना कवि का मकसद नही है।
प्रश्न 7.
सीने में क्या जलनी चाहिए?।
उत्तरः
सीने में आग जलनी चाहिए।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
कवि दुष्यन्त कुमार के अनुसार समाज में क्या फैला हुआ है?
उत्तरः
कवि दुष्यन्त कुमार के अनुसार समाज में अन्याय फैला हुआ है। दुःख, अन्याय और अत्याचार अब हद से गुज़र रहा है। लोग चुपचाप, कुछ न करते बैठ जाएँगे मगर इसी तरह चलता रहेगा। तो मनुष्य का मनुष्यता पर का विश्वास उठ जाएगा। आज क्रांति की आवश्यकता है।
प्रश्न 2.
‘हो गई पीर पर्वत-सी’ गजल में पाठकों को क्या संदेश मिलता है?
उत्तरः
कवि इसमें यह संदेश दे रहे हैं कि अन्याय और अत्याचार की हद हो गई है। अब तो परिवर्तन तो लाना ही है। सिर्फ घोषणाओं से, नारों से, लेखों से कुछ नहीं होगा। क्रांति की यह आग जन-मानस तक पहुँचनी चाहिए। हर मनुष्य को सजग होकर अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठानी है। बदलाव लाना है तो क्रांति करनी ही होगी। तब तक सब को न्याय नहीं मिलेगा।
प्रश्न 3.
पीडित व्यक्ति की संवेदना को कवि दुष्यन्त कुमार ने किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
आज जो व्यक्ति कमज़ोर है, दुर्बल है वह चारों ओर से पीसा जा रहा है। अधिकार से भरे लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे हैं। लोग अपना दुःख, दर्द लेकर किसके पास जाए? इसलिए क्रांति की यह लहर एक-एक घर तक पहुँचनी चाहिए। अगर यह क्रांति नहीं हुई तो लोग ऐसे ही सहते रहेंगे। जैसे हिमालय से गंगा निकली वैसे उनके दुःख को कोई राह मिलनी चाहिए। उसके लिए लोगों को अपना सोच-विचार बदलना होगा। उन्हें कार्यरत होना होगा, आवाज़ उठानी होगी।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 1.
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
उत्तरः
इतने सालों से अपने आस-पास चारों तरफ बहुत सी दीवारें खडी कर दी है, उस के आगे हम सोच नही सकते थे आज ये दीवारे कमजोर हो गई है, परदों की तरह हील रही है यह दीवारे। कुछ तो हलचल हो रही है। लोगों की सोच-विचार में परिवर्तन आ रहा है लेकिन शर्त यह है कि पूरी बुनियाद हिल षजाए। सिर्फ ऊपरी तौर पर नही बल्कि लोगों की पुरानी परंपरा, व्यवस्था, विचार में बदलाव आना चाहिए। पूरे अंदर से वे हिल जाए।
प्रश्न 2.
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए?
उत्तरः
सिर्फ वैचारिक रुपसे, सिर्फ साहित्य और लेख में परिवर्तन की बाते कर हंगामा खड़ा करना कवि का मकसद नही है। कवि चाहते है कि इन्सान की पहले की सूरत ही बदल जाए। समाज में, देश में क्रांति की लहर जाग उठे।
हो गई है पीर पर्वत-सी Summary in English
Poet Dushyanthkumar talks about the changes that he wants to bring in this society, by revolution. He wants to bring changes into the entire system. He says that our sorrow and pain are beyond tolerance. Like how Ganga has found a way out of the Hiinalaya, there must be a way out of this sadness also.
Over the years, we have built many walls around us. We don’t think beyond these four walls. Today these walls have become weak and crumbling. They are shaky and they shake like loose curtains in the breeze. Some small changes have taken place, but what is needed is that the entire foundation should undergo more drastic changes, not superficially, but the whole thinking process and mindset of people should change.
This battle, this struggle is not personal. This revolution, these changes should reach each and every house, locality, city and entire country. Each person should start thinking and start acting, which they have forgotten long back. People who have become numb to the whole system should react.
The Poet says that his aim is not to provoke people through literature, but revolutionise each person to put in their utmost to change the face of the system. He adds that it is not just you or me. who has to fight for the cause. The fire has to be burning inside each and every person, against injustice and suppression.