KSEEB SSLC Class 10 Hindi रचना निबन्ध-लेखन

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Karnataka State Syllabus Class 10 Hindi रचना निबन्ध-लेखन

1. जनसंख्या की समस्या। अथवा जनसंख्या वृद्धि।
विषय प्रवेश : जनसंख्या की समस्या सामान्य रूप से विश्व की समस्या है। प्रति तीन सेकण्ड में दो बालक जन्म लेते हैं। परन्तु भारत में यह समस्या विशेष रूप से विकट बन गई है। भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सातवाँ देश है, परन्तु जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है। यह केवल चीन से पीछे है। इस समय भारत की जनसंख्या 100 करोड़ से कुछ अधिक है। जनसंख्या वृद्धि की वर्तमान गति से अनुमान है कि सन् 2020 ई. तक भारत की जनसंख्या 100 करोड़ से कई गुना अधिक होगी।

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जनसंख्या में वृद्धि के कारण : जनसंख्या में वृद्धि के कई कारण हैं जैसे-

  1. विज्ञान की उन्नति के साथ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की सुविधाओं में उन्नति हुई है। फलतः जन्म लेने वाले शिशुओं की मृत्यु दर में कमी हुई है तथा औसत आयु में वृद्धि हुई है, यानी आजकल एक भारतवासी पहले की अपेक्षा अधिक समय तक जीवित रहता है।
  2. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बच्चे भगवान की देन हैं। अतएव परिवार नियोजन जैसे उपायों को सामान्यतः अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है।
  3. यह भी एक दृष्टिकोण है कि अधिक बच्चे होने से काम करने के लिए तथा परिवार की रक्षा करने के लिए अधिक हाथ उपलब्ध होते हैं। उत्पादन की वृद्धि में जनशक्ति के महत्व को कोई नार नहीं सकता।
  4. जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सबसे अधिक बाधक तत्त्व है – अशिक्षा। अशिक्षित लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि छोटे परिवार के क्या फायदे हैं। दूसरा कारण है – अन्धविश्वास तथा रूढ़िवादिता। इसके अतिरिक्त भारतीय लोग सन्तान को ईश्वरीय देन समझते हैं तथा सन्तान को भाग्य के साथ जोड़ देते हैं।
  5. जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा किये जाने वाले उपायों के असफल होने का कारण ही यह है कि परिवार नियोजन अपनाने वाला वह वर्ग है, जिसके कम बच्चे होते हैं। जिनके अधिक बच्चे होते हैं, वे परिवार नियोजन को अपनाते नहीं हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि भारत के लोग सामान्यतः परिवार-नियोजन सदृश उपचारों को अपनाने के प्रति विशेष उत्साह नहीं दिखाते हैं।

परिणाम : जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम कई रूपों में दिखाई देते हैं। जनसंख्या के विस्फोट के कारण देश की प्रगति कुंठित होती है। कितने ही महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बनाए जाएँ, वे अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते हैं। पिछली ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएँ भी अधिक जनसंख्या के कारण बौनी साबित हुई हैं। कितनी भी सुनियोजित एवं सुविचारित योजना बनाई जाए, वह कारगर नहीं होती है, क्योंकि जब तक योजना की अवधि पूरी होती है, तब तक जनसंख्या इतनी अधिक हो जाती है कि योजना का सुफल उभर कर नहीं आ पाता है।

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जनसंख्या विस्फोट के कारण बेकारी की समस्या में भी वृद्धि हुई है, क्योंकि जिस गति से जनसंख्या बढ़ी है उस गति से रोजगार के साधनों में वृद्धि नहीं हुई है। नौकरियों की संख्या सीमित रहती है। अतः हमारे अनेक युवक-युवतियाँ बेरोजगार बने रहते हैं। बेरोजगार युवक असामाजिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं, क्योंकि जीविकोपार्जन करके उन्हें अपनी आर्थिक आवश्यकताएँ तो पूरी करनी ही पड़ती हैं। यही कारण है कि हमारे देश में अनेक शिक्षित युवक आतंकवादी कार्यों तथा तस्करी में लिप्त दिखाई देते हैं।

जनसंख्या की वृद्धि के कारण अपराधों में वृद्धि हुई है तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो गई है। पर्यावरण प्रदूषण के फलस्वरूप बीमारियाँ फैलती हैं और समाज को स्वस्थ रखने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। वस्तुओं की मूल्य वृद्धि का एक प्रमुख कारण भी बढ़ती हुई जनसंख्या है। उत्पादन की तुलना में जब किसी वस्तु की माँग अधिक हो तो उस वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण दिन-प्रति दिन महँगाई बढ़ रही है।

उपचार : हम सबका यह कर्त्तव्य है कि इस समस्या के निराकरण में पूरा योगदान दें। व्यक्तिगत रूप में परिवार को छोटे से छोटा रखने का प्रयास करें। हमें यह समझ लेना चाहिए कि अधिक बच्चों का पालन-पोषण बहुत कठिन होता है। बच्चों की संख्या जितनी कम होगी, उनकी देखभाल अधिक अच्छी तरह से कर सकेंगे।

हमारी सरकार तथा सामाजिक संस्थाओं को चाहिए कि सभाओं, गोष्ठियों, समाचार-माध्यमों, संचार माध्यमों एवं रेडियो-दूरदर्शन द्वारा छोटे परिवार से होने वाले फायदों का प्रचार-प्रसार करें। कहने का तात्पर्य यह है कि परिवार को सीमित रखने की मानसिकता का प्रचार हर स्तर पर किया जाए, जिससे जनसंख्या नियंत्रण को जीवन का एक आवश्यक अंग मान लिया जाये।

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उपसंहार : हमारे देश के विकास में जनसंख्या की वृद्धि एक बहुत बड़ी बाधा है। यातायात, शिक्षा, रोजगार आदि विविध क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि सिरदर्द बन गई है। इस समस्या से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है – देश का प्रत्येक नागरिक इस समस्या का हल करने में सहायक हो। हमें निम्न पंक्तियाँ जन-जन तक पहुँचानी चाहिए-
“सुखमय जीवन का यह सार
दो बच्चों का हो परिवार।”

2. नारी तुम केवल श्रद्धा हो।
विषय प्रवेश : भारत में नारी का स्थान पूजनीय है। इसलिए प्राचीन काल में यहाँ नारी के प्रति श्रद्धा एवं भक्ति की भावना थी। पुरुष के जीवन में वह माता के रूप में, बहन के रूप में तथा पत्नी के रूप में अपना योगदान देती है। नारी के बिना पुरुष का जीवन अधूरा माना जाता है। कहा गया है – “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमते तत्र देवताः” अर्थात्, “जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ भगवान का निवास होता है।’ वेद-उपनिषद काल से नारी ने शास्त्र, गणित, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और कौशल को प्रमाणित किया है।

विषय विस्तार : अनादिकाल से भारत में बहनेवाली पवित्र नदियों को गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा जैसे स्त्रियों के नाम दिए गए हैं। मातृप्रधान परिवार की स्वीकृति इस बात को प्रमाणित करती है कि सामाजिक क्षेत्र में भी नारी को मान-सम्मान प्राप्त हुआ है। लेकिन कालांतर में अज्ञान और रूढ़िग्रस्त अंधविश्वासों के कारण नारी का अनादर होने लगा। सुरक्षा के नाम पर उसकी स्वतंत्रता का हरण हुआ। उसे मात्र विलास की वस्तु माना जाने लगा। बचपन में नारी को पिता के आश्रय में, उसके बाद पति के अधीन तथा अंत में अपने बच्चों के सहारे जीवन बिताना पड़ता था। लेकिन अब समय बदल गया है। नारी की स्थिति में बहुत बदलाव आये हैं। आज की नारी स्वतंत्र रूप से आगे बढ़कर पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर शिक्षा; चिकित्सा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, साहित्य, संगीत और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में गणनीय प्रगति कर रही है।

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भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद सरोजिनी नायडू ने प्रथम महिला राज्यपाल बनकर अपनी क्षमता का परिचय दिया। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री बनकर भारत देश को प्रगति के पथ पर अग्रसित किया। अंतरिक्ष में प्रवेश करनेवाली प्रथम भारतीय महिला कल्पना चावला ने संसार को यह सिद्ध कर दिखाया है कि स्त्री अंतरिक्ष तक पहुँच सकती है। इसी प्रकार सुनिता विलियम्स ने भी अंतरिक्ष की यात्रा कर अपने साहस का परिचय दिया है। पी.टी. उषा, अश्विनी नाचप्पा, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, मेरी कोम, ज्वाला गुट्टा आदि ने खेल-कूद के क्षेत्र में संसार भर में भारत का नाम रोशन किया है।

अनेक महिलाएँ मुख्यमंत्री, जिलाध्यक्ष और उच्च अधिकारियों के रूप में प्रशासन का कार्य संभाल रही हैं।

उपसंहार : आज केंद्र तथा राज्य सरकारों ने महिलाओं के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं। उनके लिए आरक्षण दिया है। राज्य सरकार ने दसवीं कक्षा तक बालिकाओं को निःशुल्क शिक्षा की योजना बनाई है। इसके अलावा अन्य कई सुविधाएँ भी दी जा रही हैं। आशा कर सकते हैं कि भारतीय नारी इन सुविधाओं से लाभान्वित होगी और अपने देश के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होगी।

3. स्वदेश प्रेम।
जिस व्यक्ति के हृदय में देश के प्रति प्यार नहीं है, वह मनुष्य नहीं हो सकता। वह एक पत्थर के समान है। देश-प्रेम मानव का एक स्वाभाविक गुण है। यह गुण तो पशु-पक्षियों और जानवरों में भी देखा जा सकता है। ये दिन-भर इधर-उधर घूमकर शाम को वापस अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं।

जिस देश में हमारा जन्म हुआ है, जहाँ हमारा लालन-पालन हुआ है, जहाँ का अन्न-जल हमने खाया है, उस देश के प्रति हमारे हृदय में प्रेम होना चाहिए। अंग्रेजों के शासन काल में हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था।

वीरांगना लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, मंगल पांडे, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, लाला लजपतराय, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी जैसे सैकड़ों देशभक्तों ने अपने देश की आजादी के लिए तन, मन और धन न्यौछावर कर दिया था। ये सभी शहीद हम स्वतंत्र भारतीयों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। हमारी आँखों में सदा देशप्रेम के आँसू छलकते रहें, तभी हम सच्चे देशप्रेमी कहलाएंगे।

आज देश-प्रेम का अर्थ संकीर्ण हो गया है। कुछ स्वार्थी लोग भाषा, धर्म, प्रांत, जाति, संप्रदाय आदि के लिए आपस में झगड़ते हैं, घृणा और द्वेष फैलाते हैं। इससे हमारे देश की एकता को हानि पहुँचती है। वास्तव में देशभक्ति के नाम को यह धब्बा है। हमें अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को सही ढंग से निभाना चाहिए। हमें अपने देश की एकता की रक्षा करनी चाहिए।

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यदि हम राष्ट्रीय एकता तथा प्रेम की भावना अपनाएँगे, तभी हम सच्चे देश-प्रेमी कहलायेंगे। हमें अपने बलिदानियों का सम्मान रखने के लिए स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। तभी हमारे देश की उन्नति होगी और भारत फिर गौरवशाली देश बनेगा, ‘सोने की चिड़िया’ कहलायेगा।

4. प्रदूषण की समस्या/पर्यावरण प्रदूषण।
मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिये प्रकृति से छेड़छाड़ कर रहा है। इससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और प्रदूषण फैलता जा रहा है। प्रदूषण का अर्थ है – दूषित वातावरण। पर्यावरण के तीन अंग हैं – वायु, जल और भूमि। इनके अतिरिका ध्वनि प्रदूषण भी आजकल एक समस्या हो गई है। महानगरों में आज अत्यधिक वायु-प्रदूषण हो रहा है।

वायु-प्रदूषण के दो मुख्य कारण हैं – एक तो यह कि कारखानों और वाहनों से निकलने वाला . धुआँ। इसमें कार्बनमोनोक्साइड गैस होती है। यह शुद्ध हवा में मिलकर उसे प्रदूषित कर देती है। कारखानों से निकलने वाला विषैला जल, शुद्ध जल को प्रदूषित कर दता है। जनसंख्या की अभिवृद्धि के कारण घरों की गंदी नालियों का पानी भी नालों व नदियों में मिल जाता है। गाँवों के लोग तालाबों में नहाना-धोना करते हैं, जानवरों को भी नहलाते हैं। इससे भी जल-प्रदूषण होता है और बीमारियाँ फैल जाती हैं। बड़े-बड़े महानगरों में कूड़े-कचरे के कारण भी प्रदूषण व बीमारियाँ फैलती हैं।

आजकल किसान अपने खेतों में अधिक फसल प्राप्त करने की लालच में अनेक प्रकार के रासायनिक खादों को छिड़कते हैं। परिणामतः भूमि प्रदूषण होता है। शहरों में कारखानों के भोंपू, वाहनों तथा लाऊडस्पीकरों की तेज ध्वनियों से ध्वनि-प्रदूषण भी होता है। इससे कभी-कभी लोगों के बहरे होने का खतरा भी पैदा होता है। नये-नये वैज्ञानिक प्रयोगों के कारण आज धरती पर अत्यधिक गर्मी होने लगी है।

हाल ही में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जो उथल-पुथल मची थी, बादल फटे थे, भूकंप आया था और बाढ़ का जो भयंकर प्रकोप देखा गया था, वह सब इसी असंतुलन के कारण हुआ था।

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यदि मनुष्य ने ठीक समय पर समझदारी से काम नहीं लिया तो सब-कुछ तबाह हो जायेगा। अतः हमें सचेत हो जाना चाहिए। वृक्षारोपण को अधिक महत्व देना चाहिए। गंदे पानी की नालियों को नदी में नहीं मिलने देना चाहिए। अनावश्यक शोरगुल को रोकने का प्रयास करना चाहिए। पेड़ों को नहीं काटना चाहिए। परमाणु-विस्फोट आदि को रोकने का प्रयास होना चाहिए। तभी हम प्रदूषण की समस्या को हल कर पायेंगे।

5. समाचार-पत्र।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज की जानकारी प्राप्त करने के लिए वह सदा उत्सुक रहता है और वह इनके लिए नयी-नयी खोज करता रहता है। समाचार-पत्र इनमें एक महत्वपूर्ण साधन है।

समाचार-पत्र हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। प्रातःकाल उठते ही चाय के साथ यदि हमें समाचार-पत्र पढ़ने के लिए नहीं मिलता, तो ऐसा लगता है, मानो हमारा कुछ खो गया है।

ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले समाचार-पत्र चीन में शुरू हुआ था। आज विश्वभर के सभी देशों में सभी भाषाओं में समाचार-पत्र छपते हैं। समाचार-पत्रों में कई प्रकार हैं। जैसे – दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक आदि। समाचार-पत्र अभिव्यक्ति के माध्यम हैं।

समाचार-पत्रों में सबकी रुचि के अनुसार समाचार होते हैं। जैसे – स्थानीय समाचार, राष्ट्रीय एवम अन्तरराष्ट्रीय समाचार, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, खेल समाचार, बाजार-भाव, मौसम का हाल-चाल, बच्चों का कोना आदि-आदि। इतना ही नहीं, सरकारी, अर्धसरकारी सूचनाएँ, स्कूलकॉलेज सम्बन्धी जानकारी, विद्यार्थियों को मार्गदर्शन, तीज-त्योहार, दैनिक व साप्ताहिक भविष्य इत्यादि बहुत-कुछ जानकारियाँ दी जाती हैं।

समाचार-पत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज तथा देश-निर्माण की जिम्मेदारी भी समाचार-पत्र सरकार और जनता के बीच की कड़ी है। आजकल राजनीतिक दल चुनाव आदि के संदर्भ में इन्हीं के माध्यम से अपनी नीतियों का प्रचार करते हैं।

समाचार-पत्रों में आजकल कुछ अश्लील चित्र, फूहड़-समाचार आदि के छपने से एवं झूठे विज्ञापनों से समाज पर बुरे असर भी पड़ने लगे हैं। भोले-भोले लोग धोखे में भी आ जाते हैं। अतः पाठकों को जागृत होना जरूरी है।

6. पर्यटन का महत्व।
पर्यटन का अभिप्राय है देश-विदेश में भ्रमण। मनुष्य हमेशा कुछ न कुछ नया देखना चाहता है। अतः पर्यटन के प्रति उसका आकर्षण सहज और स्वाभाविक है। युग-युग से मनुष्य पर्यटन करता आया है। इसी घुमक्कड़ प्रवृत्ति के कारण कोलंबस ने अमेरिका की खोज की। वास्को-द-गामा ने भारत में आने का नया समुद्री मार्ग ढूँढा था।

प्राचीन काल में पर्यटन की सुविधाएँ नहीं थीं। जंगल में चोर-डाकुओं का भय, पशुओं का भय, वर्षा-तूफान आदि का भय था। वर्तमान समय में मोटर, ट्रेन, वायुयान आदि की सुविधा होने से पर्यटन में बहुत-सी सुविधाएँ हो गई हैं। लोग कम समय में अधिक दूरी तक यात्रा कर सकते हैं।

आजकल लोगों को कमाई के अनेक साधन सूझते हैं। पर्यटन आज व्यापार का माध्यम हो गया है। देश-विदेश के अनेक स्थलों में पर्यटन आकर्षित केन्द्र बनाये गये हैं। भारत में कश्मीर, कुल्लू की घाटी, नैनीताल, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर, उटकमंड आदि लाखों ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जहाँ भारतीय एवं विदेशी यात्री पर्यटन का लाभ और आनंद उठाते हैं।

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पर्यटन से अनेक लाभ हैं। यही कारण है कि आजकल स्कूल-कॉलेजों में भी ‘पर्यटन को शिक्षा का आवश्यक अंग’ माना गया है। देश-विदेश के लोग आपस में मिलते हैं। एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। भूगोल और इतिहास में पढ़े स्थलों और नगरों को अपनी आँखों से देखकर एक निराला आनंद होता है। पर्यटक आनंद प्राप्त करने के साथ-साथ बहुत कुछ सीखतें भी है। हम ताजमहल, लाल किला, अजंता-एलोरा, भाखरा-नांगल, कन्याकुमारी, जोग जलप्रपात, मैसूर, हलेबीडू-बेलूरु, श्रवणबेलगोल, पट्टदकल्लु, हंपी, गोलगुम्बज, मीनाक्षी मंदिर आदि स्थानों को देखकर रोमांचित हो उठते हैं।

इस प्रकार पर्यटन से हमारा ज्ञान भी बढ़ता है। पर्यटन-प्रेमी अन्य देशों में जाकर अपनी जिज्ञासा शांत कर आनंदित हो सकते है। इसके अलावा संस्कृति और सभ्यता के आदान-प्रदान से मानवीय संबंध भी स्थापित हो सकते है।

7. दूरदर्शन।
मनुष्य जब काम करते-करते थक जाता है, तो उसे मनोरंजन की आवश्यकता पड़ती है। विज्ञान ने मनोरंजन के अनेक साधन प्रस्तुत किए हैं, उनमें ‘दूरदर्शन’ भी एक है। दूरदर्शन शब्द का अर्थ होता है – दूर के दृश्यों का दर्शन । अंग्रेजी में इसे ‘टेलीविजन’ कहते हैं। सन् 1925 में जेम्स बेअर्ड ने टेलीविजन का आविष्कार किया था। प्रारंभ में यह श्याम-श्वेत रंगों में था और आज रंगीन चित्र देखे जा सकते हैं।

दूरदर्शन एक दृश्य माध्यम होने के कारण इसका प्रभाव श्रव्य माध्यम से अधिक पड़ता है। दूरदर्शन में समाचार, कृषि-दर्शन के अलावा नए-नए मनोरंजन व ज्ञानवर्धक कार्यक्रम भी दिखाए जाते हैं। चौबीसों घंटे विभिन्न चैनलों के जरिए कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। घर-घर में बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष इसके दीवाने हो गए हैं।

दूरदर्शन से सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, वैज्ञानिक विषयों के धारावाहिक कार्यक्रमों से ज्ञान का विकास तो होता है, परन्तु पश्चिमी सभ्यता के कार्यक्रम व नए-नए फैशन आदि के अश्लील दृश्यों के प्रसारण से बच्चों व किशोरों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। दूरदर्शन में प्रसारित हिंसा, चोरी, अश्लीलता, अपराध आदि का युवा पीढ़ी पर यथाशीघ्र प्रभाव होता है। इसलिए इन सबसे बचने की भी कोशिश होनी चाहिए।

आजकल दूरदर्शन का इतना अधिक प्रभाव हो गया है कि विद्यार्थी अपनी पढ़ाई, महिलाएँ अपना काम-काज छोड़कर दूरदर्शन के सामने बैठ जाते है। यहाँ तक कि जब कहीं क्रिकेट का मैच चलता है उसे देखने के लिए कार्यालयों के कर्मचारी अपना महत्वपूर्ण कार्य ठप करके, दूरदर्शन के सामने बैठ जाते हैं। दूरदर्शन से निकलने वाली किरणें हानिकारक होती हैं। लगातार टी.वी. देखने से आँखों और कानों पर बुरा असर पड़ता है।

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इससे आपसी मेल-मिलाप और संबंध भी घटते जा रहे हैं। दूरदर्शन का आविष्कार ज्ञान-विकास के लिए हुआ है, न कि सभ्यता और संस्कृति के पतन के लिए। ठीक है कि हम विज्ञान की प्रगति को रोक नहीं सकते, परन्तु हमें अपनी सभ्यता से भी जुड़े रहना चाहिए। दूरदर्शन को हानिकारक या लाभकारक बनाना हमारे हाथ में है। हम वही देखें, जो देखने लायक है। तब दूरदर्शन हमारे लिए वरदान सिद्ध होगा।

8. वनमहोत्सव।
कृषिप्रधान भारत देश में वृक्ष की बड़ी महिमा बताई गई है। भारत में अशोक, वट, पीपल और तुलसी आदि की पूजा की जाती है। मंगल कार्यों में केले के पत्ते और आम के पत्तों का उपयोग किया जाता है। सचमुच, देश के वन, देश की आत्मा है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है – “जो व्यक्ति वृक्ष काटता है, वह आत्मघात करता है।”

आज भारत में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में केवल 21% जंगल बचे है। यह वास्तव में हमारे लिए चिंता का विषय है। क्योंकि अभी भी वनों और वृक्षों की कटाई नहीं रुकी है। लोग चोरी छुपे भी पेड़ काटने में नहीं हिचकते। चारों ओर बाढ़ और सूखे की खबरें आती रहती हैं। फिर भी यह स्वार्थी मनुष्य वनस्पतियों की हत्या करने पर तुला हुआ है।

मनुष्य को समझना चाहिए कि वृक्ष हमारे फेफड़े हैं। वृक्ष का एक पत्ता चौबीस घंटों में दो सौ ग्राम ऑक्सीजन बनाता है। यह हमारी प्राणवायु है। एक वृक्ष के काटे जाने पर हम कितनी ऑक्सीजन से वंचित हो जाते हैं? सच कहा जाय तो वृक्ष हमारे शरीर की रीढ़ है और यदि हम इन्हें काट रहे हैं, तो समझ लो कि अपनी ही रीढ़ को हम काट रहे हैं।

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आज वृक्षारोपण की अत्यन्त आवश्यकता है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत भर में वन-महोत्सव का आयोजन होता रहा है। जगह-जगह बड़ी संख्या में वृक्ष लगाए जाते हैं। आगे चलकर चिपको आंदोलन ने भी इस क्षेत्र में अच्छा कार्य किया है। स्कूल-कॉलेजों में प्रति वर्ष वन-महोत्सव मनाकर, वृक्ष लगाने की क्रांति की जा रही है।

भगवान की इस सृष्टि में वृक्ष ही एक ऐसी चीज है, जो हमें सब-कुछ देते हैं। इस प्रकार वृक्ष हमें पत्थर फेंकने पर भी फल देते हैं। उनके इस परोपकार या कृतज्ञता के सम्मुख हम कृतघ्न न बने। “हर वृक्ष है जीवन दाता। प्राण-वायु और वर्षा देता।’ “वृक्ष लगाओ, प्रदूषण भगाओ।” हम प्रतिज्ञा करें कि अपने जन्म-दिवस पर एक पेड़ अवश्य लगाएंगे।

9. बेरोज़गारी।
बेरोजगारी आज देश की बहुत बड़ी समस्या है। दिन-प्रतिदिन बेरोजगार युवक-युवतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। स्वतंत्रता के साठ वर्षों के पश्चात् भी आज यह समस्या मिटाई नहीं जा सकी है। इससे हमारी प्रगति में अवरोध हो रहा है।

बेरोजगारी के हमारे यहाँ कई कारण हैं – जनसंख्या की अभिवृद्धि, अशिक्षा, कर्महीनता, आलसी प्रवृत्ति भी एक है। किसान भी वर्ष भर में कुछ समय कृषि-कार्य में लगे रहते हैं और बाकी समय खाली बैठे रहते हैं। हमारे साधनों की उपलब्धि जनसंख्या के अनुरूप नहीं है। हमारी शिक्षा की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। हमारी शिक्षा का आधार प्रायोगिक नहीं है। इसी कारण से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भी नौकरी नहीं मिल पाती। लघु-उद्योगों का घटना भी बेरोजगारी बढ़ने का एक कारण है।

यदि हम पैतृक उद्योग-धंधे छोड़ बैठेंगे और नौकरी ढूँढेंगे तो नौकरी कहाँ मिलेगी? अतः नवयुवकों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। ऐसी शिक्षा प्राप्त करें, जो व्यावसायिक शिक्षा हो। शिक्षा का प्रयोग उद्योगों व फैक्ट्रियों में हो सके और आसानी से नौकरी पा सकें।

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इस दृष्टि से गत कई वर्षों से पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत सरकार निरंतर प्रयासरत है। स्कूल-कॉलेजों में तकनीकी तथा व्यवसायिक शिक्षा को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए भी विभिन्न परिवार कल्याण योजनाओं को लागू किया गया है।

सभी बड़े-बड़े शहरों में रोजगार कार्यालय खोले गये हैं। इनके माध्यम से बेरोजगारों को रोजगार दिया जाने लगा है। फिर भी जितनी रिक्तियाँ होती हैं, उनसे कई गुना अधिक बेरोजगारों की संख्या होती है। परिणाम-स्वरूप असंगठित क्षेत्र में अत्यन्त कम वेतन पर लोगों को काम करने पर मजबूर होना पड़ता है।

सरकार का भी प्रयत्न रहता है कि सभी युवकों को काम मिले। सभी स्वावलंबी बने। सिर्फ सरकारी नौकरियों की ओर न ताके; बल्कि तकनीकी या व्यवसायिक शिक्षा पाकर स्वयं का उद्योग खोले। इसके लिए सरकार राष्ट्रीय बैंकों से ऋण दे रही है, प्रशिक्षण दे रही है, सब्सीड़ी दे रही है। हो सकता है, कुछ वर्षों में बेरोजगारी की समस्या पूर्णतः भले ही न मिटे, परन्तु कम जरूर होगी।

10. महँगाई।
भारत में महँगाई प्राचीन समय से ही है, परंतु इन दिनों उसका प्रमाण इतना बढ़ गया है कि वह एक बड़ी समस्या हो गई है और लोगों के लिए जीना दूभर हो गया है। सर्वसाधारण व्यक्ति को इसके लिए घोर संघर्ष करना पड़ रहा है। रोटी, कपड़ा और मकान – ये तीनों मूल आवश्यकताएँ हैं, परन्तु महँगाई के कारण इन्हीं के लिए आज आमजन परेशान है।

हमें देखना होगा कि हर वस्तु की कीमत क्यों बढ़ती जा रही है? किन कारणों से बढ़ती कीमतों पर हमारा नियंत्रण नहीं हो रहा है। मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए हमें और कौन-कौन से उपाय करने चाहिए – इस पर भी गंभीर चिंतन होना चाहिए।

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गहन अध्ययन करने से पता चलता है कि एक कारण बढ़ती जनसंख्या भी है। जितने साधन हैं, जितने पदार्थ हैं, जितनी उपलब्धि है, उससे कहीं अधिक हमारी आबादी है। अतः महँगाई बढ़ना स्वाभाविक है। उत्पादन कम है और मांग अधिक है। इसके अलावा शहरीकरण, धन और साधनों का दुरुपयोग, कालाधन, भ्रष्टाचार, दोषपूर्ण वितरण की प्रणाली – ये सभी मूल्य-वृद्धि के कारण हैं।

आज देशभर में महँगाई के विरोध में आंदोलन हो रहे हैं, बैठकें व चर्चाएं हो रही हैं। सरकार भी इससे परिचित है। आजादी के बाद मूल्यवृद्धि को रोकने के लिए कई उपाय किए गए, परन्तु पूर्णतः महँगाई कम नहीं हुई। फिर भी प्रयास जारी है। ‘परिवार-नियोजन’ पर जोर दिया जा रहा है। बाजार को पूरी तरह खुला किया जा रहा है। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। वस्तुओं की गुणवत्ता बढ़ रही है, महँगाई पर नियंत्रण होने लगा है। कुछ-एक वस्तुओं के भाव भी कम हुए हैं।

हमें चाहिए की संसाधनों का दुरुपयोग रोकना चाहिए। भंडारणों में सही ढंग से माल सुरक्षित हों। वितरण प्रणाली में सुधार लाना चाहिए। भ्रष्टाचार को रोकना चाहिए। यद्यपि सरकार ने कुछ कानून जरूर बनाए हैं, तथापि वे अभी कारगर नहीं हुए हैं। नीतियों का कठोरता से पालन करना होगा।

देश में मूल्यवृद्धि के नियंत्रण के लिए कुशल नीतियाँ, जनसंख्या नियंत्रण, उत्पादन की कीमतों में प्रतिबंधन हेतु दृढ़ इच्छाशक्ति और परस्पर सहयोग जरूरी है।

11. मेरे प्रिय अध्यापक।
यों तो मेरे स्कूल के सभी अध्यापक मेरे प्रिय ही हैं। परन्तु उन सभी में मेरे हिन्दी के अध्यापक मेरे सर्वाधिक प्रिय अध्यापक हैं। उनका व्यक्तित्व, पढ़ाने का ढंग, उनका स्वभाव आदि हमें बहुत अच्छे लगते हैं।

हमारे हिन्दी अध्यापक सादगी से रहते हैं। वे पढ़ाते समय प्रायः भारत और संसार के अन्य देशों के महापुरुषों की चर्चा करते हैं। जब हम थक जाते हैं, तो वे किसी महापुरुष के जीवन का प्रेरक प्रसंग सुनाकर हमारा ध्यान पढ़ाई में फिर से लगा देते हैं। उनके द्वारा सुनाया हुआ प्रसंग हमारे पाठ या कविता के अभिप्राय को और भी स्पष्ट कर देता है। सचमुच हमारे हिन्दी शिक्षक सादा जीवन और उच्च विचार के जीते-जागते उदाहरण है।

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हमें आश्चर्य होता है कि उन्हें प्रायः प्रत्येक विद्यार्थी का नाम पूरा-पूरा याद है। अनुपस्थित रहने वाले छात्र या छात्रा की कठिनाइयों का अहसास उन्हें अपने-आप हो जाता है। वे सभी विद्यार्थियों से व्यक्तिगत संपर्क कायम कर चुके हैं और हर प्रकार से सबकी सहायता करते हैं।

हमारे हिन्दी अध्यापक विद्यालय के प्रत्येक उत्सव की तैयारी में अपना योगदान करते हैं। उनके प्रभाव से हममें अच्छा अनुशासन बना रहता है। यही कारण है कि मुख्याध्यापक व स्कूल की प्रबन्धक समिति भी उनका सम्मान करते हैं। उनका गंभीर अध्ययन और अनुभव सभी को प्रभावित करता है।

विद्यार्थियों के अभिभावक भी हमारे हिन्दी शिक्षक को बहुत पसंद करते हैं। हम सभी विद्यार्थी यह कामना करते हैं कि हमारे हिन्दी अध्यापक अध्यापन के साथ-साथ अपने जीवन में भी सफल हों।

12. राष्ट्रीय त्योहार।
राष्ट्रीय त्योहार एकता के प्रतीक होते हैं। वे प्रादेशिक, सांप्रदायिक, जातीय एवं भाषायी संकीर्णता से भी मुक्त होते हैं। 15 अगस्त हमारा स्वतंत्रता दिवस है और 26 जनवरी गणतंत्र-दिवस है। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था। 26 जनवरी, 1950 को वह सार्वभौम घोषित हुआ था। इनके अलावा गांधी जयंती भी राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनायी जाती हैं।

इन त्योहारों को मनाने के पीछे राष्ट्रप्रेम, एकता, त्याग और बलिदान की भावना रहती है। सभी धर्मों के प्रति समान आदर-भाव व्यक्त कर राष्ट्र की एकता का संकल्प दुहराते हैं। देश के.अमर शहीदों का स्मरण कर उनके त्याग और बलिदान से प्रेरणा लेते हैं।

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राष्ट्रीय उत्सवों के कार्यक्रमों में भारतीय जनता के पूर्ण सहयोग के लिए प्रयत्न किए जाते हैं। सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवों में कुछ उत्साह के दर्शन होते हैं, परन्तु राष्ट्रीय उत्सवों में सामान्य जन की भागीदारी कम होती है।

आज देशभर में राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करने की आवश्यकता है। राष्ट्र का वास्तविक स्वरूप जनता और उसकी चेतना है। केवल शिक्षित और शक्तिशाली लोगों द्वारा राष्ट्रीय त्योहार मनाने से क्या होगा? अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम सब मिलकर राष्ट्रीय त्योहार मनाएँ और एकता प्रस्तुत करें।

13. गणतंत्र-दिवस।
26 जनवरी 1950 के दिन देश को पूर्ण स्वायत्त गणराज्य घोषित किया गया था। इसी दिन हमारा संविधान लागू किया गया था। इसी दिन ई. 1930 को रावी नदी के तट पर पं. नेहरू की अध्यक्षता में स्वराज्य का प्रस्ताव पारित हुआ था। इसलिए प्रति वर्ष हम इसे राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं।

जनता के द्वारा, जनता का और जनता के लिए राज्य शासन का होना लोकतंत्र तथा गणतंत्र की पहली आवश्यकता है। हमारी कई कमियाँ और कई समस्याएँ रहते हुए भी हमारा गणतंत्र सफल रहा है।

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गणतंत्र-उत्सव मनाने के लिए कई दिन पूर्व तैयारिया शुरू की जाती हैं। इसका भव्य आयोजन तो देश की राजधानी दिल्ली में होता है। प्रातः शहीद ज्योति का अभिनंदन होता है। शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के मेहमानों को आमंत्रित किया जाता है। दिल्ली के विजय चौक से लाल-किले तक होनेवाली परेड़ आकर्षक होती है।

तीनों सेनाओं के प्रमुख राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। हर एक राज्य की अपनी विशिष्ट झाँकी होती है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। हेलिकॉप्टर से फूलों की पखंड़ियाँ बरसाई जाती हैं। ऐसे ही कार्यक्रम राज्यों की राजधानियों में, स्कूल-कॉलेजों में भी मनाये जाते हैं। गणतंत्रदिवस राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा देता है। यह हमें अपने संविधान की सर्वोच्चता की भी याद दिलाता है।

14. स्त्री-शिक्षा।
कहते हैं – “शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान माना जाता है। अतः प्रत्येक को शिक्षा प्राप्त करना जरूरी है। एक समय ऐसा था, जब स्त्रियों की शिक्षा जरूरी नहीं मानी जाती थी। सभी को चार-दीवारी में बंद रहना पड़ता था और यह भी सोच थी कि स्त्री को केवल चूल्हे-चक्की तक ही सीमित रहना चाहिए।

आज समय बदल गया है। स्त्री और पुरुष का भेद मिटता जा रहा है। पुरुष की तरह स्त्री भी पढ़कर होशियार बन रही है। वह भी पुरुषों की तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। अब स्त्री अबला न रहकर सबला है।

स्त्री शिक्षा का अच्छा परिणाम देखने को मिल रहा है। पुरुषों से भी स्त्रियाँ पढ़ाई में आगे जा रही हैं। जहाँ-जहाँ नौकरियों में लगी हैं (अध्यापिका, नर्स, डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, पार्षद, विधायिका, सांसद आदि …. आदि) वहाँ-वहाँ स्त्रियाँ सफल रही हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा अनुभव हो रहा है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की संख्या अधिक है। यह सब स्त्री-शिक्षा का ही प्रभाव है।

समय की माँग है कि स्त्री-शिक्षा को महत्व दिया जाए, प्रोत्साहित किया जाए। प्राचीन काल में भी स्त्रियों ने नाम कमाया था और आज भी कमा रही हैं। स्त्री-शिक्षा भी राष्ट्र की उन्नति में सहयोगी बन सकती है।

15. आदर्श विद्यार्थी।
विद्यार्थी जीवन सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है। आदर्श विद्यार्थी वह है, जो परिश्रम और लगन से अध्ययन करता है। अच्छे गुणों को अपनाकर अपने माता-पिता और गुरुजनों का नाम रोशन करने वाला आदर्श विद्यार्थी है। एक आदर्श विद्यार्थी पुस्तकों को ही अपना सच्चा मित्र समझता है। अपने जीवन के निर्माण के लिए आदर्श विद्यार्थी सदा अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करता है। आदर्श विद्यार्थी परिश्रमी होता है।

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आदर्श विद्यार्थी अपने गुरु का सम्मान करते हुए, उनकी आज्ञा का पालन करता हैं। कक्षा में ध्यानपूर्वक पढ़ता है। पढ़ाई के साथ-साथ खेल-कूद को भी महत्व देना चाहिए। वह स्वस्थ रहेगा, तो उसके मस्तिष्क का विकास होगा। आदर्श विद्यार्थी खेल-कूद के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, विभिन्न प्रतियोगिताओं में आसक्ति से भाग लेता है।

आदर्श विद्यार्थी सदा नैतिकता को बनाये रखता है। वह समझता है – “धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, चरित्र गया तो सब-कुछ गया।” आदर्श विद्यार्थी अपने सहपाठियों के संग मिलजुलकर रहता है। वह अहंकार नहीं करता। कुसंगतियों से सदा दूर रहता है। सत्य का आचरण करता है। “कौए की चेष्टा, बक का ध्यान, कुत्ते की नींद, अल्पाहार और ब्रह्मचर्य” – ये आदर्श विद्यार्थी के लक्षण हैं।