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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav पद्य Chapter 2 सूरदास के पद
सूरदास के पद Questions and Answers, Notes, Summary
1. भावार्थ : सूरदास पहले पद में गोपिकाएँ और उद्भव के बीच हुए बातचीत के बारे में कह रहे है। गोपिकाँए अपने आपको बहुत भाग्यशालिनी कह रही है। जिन आँखोको शाम को देखने का सौभाग्य मिला जैसे भौरे फूलोसे प्यार करनेवाले। फूलोंकी सुगंध हवा चारों ओर फैलाती है। अंग-अंग खुशी से रोमांचित हुआ है बहुत सुख का अनुभव कर रही है। आजकल दर्पण मे देखना भी बहुत अच्छा लग रहा है प्यार की झलक से चेहरा परम सुंदर दिख रहा है। सुरदास कह रहे है ऐसे कृष्ण हम को भी मिले ताकि हमारे विरह का दुःख भी चला जाएगा। गोपियों की तरह हम भी सुख और आनंद में लहरेगे।
2. दूसरे पद में सूरदास कृष्ण के रुपसौंदर्य का वर्णन कर रहे है। गोपिकाएँ कह रही है जमुना नदीके किनारे कृष्ण को देखा। उन्होने मोर मुकुट पहना है, उनके कान के कुंडल मकराकृत है, शरीर पर चंदन है और उन्होने पीला वस्त्र पहना है ऐसे कृष्ण का रूप देखकर आँखोंकी प्यास बुझ गई, आँखे तृप्त हुई। हृदय की आग बुझ गई। प्रेम में पागल गोपिकाओं का हृदय भर आया है, उसके मुख से शब्द नही निकल रहे है। नदी के किनारे खडे कृष्ण से मिलने जा रही नारियाँ लज्जा से गड गई है। सूरदास कह रहे है कृष्ण प्रभु तो अंर्तज्ञानी है। वे इन गोपिकाओं की मनस्थिति को समझ सकते है।
3. तीसरे पद में सूरदास गोपिकाओं के समर्पण भाव के बारे में बता रहे है। इसमें हमे यशोदा और ग्वालिनी के वात्सल्य प्रेम के बारे में जान सकते है। चोरी करते हुए कान्हा पकडे गए गोपियाँ कहती है – कान्हा तुम तो दिन रात हमे सताते हो, आज जाके तुम हमारे हाथ आए हो। जितना भी माखन दही हो सब खा लेते हो। अब तुम्हारा यह खेल खत्म हुआ। मै तुम्हे भलीभाँति जानती हूँ। तुम्हीं माखन चोर हो। कान्हा के हाथ पकडकर, ‘माखन जितना चाहे माँग के खाते’ कहने पर बडे ही निरागसता से कान्हा कहते है -‘तुम्हारी सौगंध, माखन मैनें नहीं खाया मेरे सारे दोस्त ही खा लेते है और मेरा नाम बताते है।’ उसके मुखपर लगा माखन देखा और उसकी प्यारी, तुतलाती बोलों को सुनकर गोपिका के हृदय ममता से भर उठता है। कान्हा का यह रूप उसे इतना लुभावना लगता है कि उसका गुस्सा भाग जाता है और वह कान्हा को गोदी में उठा लेती है। यह दृश्य देखकर सूरदास कहते है ऐसे कान्हा और गोपिका पर तो मैं बलि बलि जाऊँ।
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर: दीजिए।
प्रश्न 1.
अपने आपको कौन भाग्यशालिनी समझ रही है?
उत्तर:
गोपिकाएँ अपने आपको भाग्यशालिनी समझ रही है।
प्रश्न 2.
गोपिकाएं किसे संबोधित करते हुए बातें कर रही है?
उत्तर:
गोपिकाएँ उद्भव से बातें कर रही है।
प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण के कान में किस आकार का कुंडल है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के कान में मकराकृत कुंडल है।
प्रश्न 4.
वाणी कहाँ रह गई?
उत्तर:
वाणी मुख मे ही रह गई।
प्रश्न 5.
कौन अंतर की बात जाननेवाले है?
उत्तर:
कृष्ण अंतर की बात जाननेवाले है।
प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण के अनुसार किसने सब माखन रवा लिया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के अनुसार उसके सखा सब माखन खा गए।
प्रश्न 7.
सूरदास किसकी शोभा पर बालि जाते है?
उत्तर:
सूरदास कान्हा को गोदी में उठाए ग्वालिनी के शोभा पर बालि जाते है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: लिखिएः।
प्रश्न 1.
गोपिकाएं अपने आपको क्यों भाग्यशालिनी समझती है?
उत्तर:
सूरदास गोपिकाएँ और उद्भव के बीच हुए बातचीत के बारे में कह रहे है। गोपिकाँए अपने आपको बहुत भाग्यशालिनी कह रही है। जिन आँखोको शाम को देखने का सौभाग्य मिला जैसे भौरे फूलोसे प्यार करनेवाले। फूलोंकी सुगंध हवा चारों ओर फैलाती है। अंग-अंग खुशी से रोमांचित हुआ है बहुत सुख का अनुभव कर रही है। आजकल दर्पण मे देखना भी बहुत अच्छा लग रहा है प्यार की झलक से चेहरा परम सुंदर दिख रहा है। सरदास कह रहे है ऐसे कृष्ण हम को भी मिले ताकि हमारे विरह का दुःख भी चला जाएगा। गोपिया की तरह हम भी सुख और आनंद में लहरेगे।
प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के रुप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूरदास कृष्ण के रुपसौंदर्य का वर्णन कर रहे है। गोपिकाएँ कह रही है जमुना नदीके किनारे कृष्ण को देखा। उन्होने मोर मुकुट पहना है, उनके कान के कुंडल मकराकृत है, शरीर पर चंदन है और उन्होने पीला वस्त्र पहना है ऐसे कृष्ण का रूप देखकर आँखोंकी प्यास बुझ गई, आँखे तृप्त हुई। हृदय की आग बुझ गई। प्रेम में पागल गोपिकाओं का हृदय भर आया है, उसके मुख से शब्द नही निकल रहे है। नदी के किनारे खडे कृष्ण से मिलने जा रही नारियाँ लज्जा से गड गई है। सूरदास कह रहे है कृष्ण प्रभु तो अंर्तज्ञानी है। वे इन गोपिकाओं की मनस्थिति को समझ सकते है।
प्रश्न 3.
सूरदास ने माखन चोरी प्रसंग का किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर:
सूरदास ने बालक कृष्ण के ‘माखन-चोरी’ प्रसंग का वर्णन अत्यंत मनोहर ढंग से प्रस्तुत किया है। एक बार माखन चोरी करते हए कन्हैया गोपिका के हाथ पकड़े गये। गोपिका गुस्से से उन्हें कहती है कि मुझे तुमने दिन-रात बहुत सताया। मैं तंग आ चुकी हूँ। मेरा माखन, दूध एवं दही सब खा लिया है लेकिन अब नहीं चलेगा। तुम्हारे घर से सब माखन, दूध एवं दही मँगाऊँगी। कृष्ण कहते हैं कि तेरी कसम मैंने माखन नहीं खाया है। मेरे मित्र सब खाकर चले गए। उनके मुख पर माखन लगे देख गोपिका सारा रहस्य समझ जाती है। गोपिका का गुस्सा क्षण भर में समाप्त हो जाता है और वह उन्हें गले लगा लेती है।
III. संसदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए:
प्रश्न 1.
ऊघौ हम आजु भई बड़ – भागी जिन अँखियन तुम स्यांम बिलोके ते अँखियाँ हम लागी। जैसे सुमन बास लै आवत, पवन मधुप अनुरागी। अति आनंद होत है तैसै, अंग-अंग सुख रागी।
उत्तर:
सूरदास गोपिकाएँ और उद्भव के बीच हुए बातचीत के बारे में कह रहे है। गोपिकाँए अपने आपको बहुत भाग्यशालिनी कह रही है। जिन आँखोको शाम को देखने का सौभाग्य मिला जैसे भौरे फूलोसे प्यार करनेवाले। फूलोंकी सुगंध हवा चारों ओर फैलाती है। अंग-अंग खुशी से रोमांचित हुआ है बहुत सुख का अनुभव कर रही है। आजकल दर्पण मे देखना भी बहुत अच्छा लग रहा है प्यार की झलक से चेहरा परम सुंदर दिख रहा है। सुरदास कह रहे है ऐसे कृष्ण हम को भी मिले ताकि हमारे विरह का दुःख भी चला जाएगा। गोपियों की तरह हम भी सुख और आनंद में लहरेगे।
सूरदास के पद Summary in English
In this poem, Surdas has described the divine love of the gopikas (milkmaids) for Lord Krishna. They are expressing how they feel when they are around Krishna. They get attracted to him like the bees to the flowers. They see beauty in all forms of life around them and within themselves.
They feel very fortunate for getting to spend time and be with Lord Krishna. So, the poet feels he too should get the Lord to quench his loneliness and get peace and happiness. He also explains/describes the beauty of Lord Krishna the way the Gopikas see Him. His divine being is so beautiful, that just a glance of him satisfies them and satiates their feelings.
As the Lord is the all-knowing one, he knows the feelings of the gopikas towards Him. Surdas also explains how the girls surrender themselves to the Lord. The immense love and affection they feel for Him, even though he troubled them by stealing their butter. The poet says this is the spiritual love he feels for Lord Krishna.
सूरदास के पद Summary in Kannada